हर दिन पावन

हर दिन के भारतीय इतिहास के पन्नो से ....

श्यामजी कृष्ण वर्मा (4 अक्टूबर, 1857 - 31 मार्च, 1933) क्रांतिकारी गतिविधियों के माध्यम से भारत की आजादी के संकल्प को गतिशील करने वाले एवं कई क्रान्तिकारियों के प्रेरणास्रोत थे। वे पहले भारतीय थे, जिन्हें ऑक्सफोर्ड से एम.ए. और बैरिस्टर की उपाधियां मिलीं थीं। पुणे में दिए गए उनके संस्कृत के भाषण से प्रभावित होकर मोनियर विलियम्स ने वर्माजी को ऑक्सफोर्ड में संस्कृत का सहायक प्रोफेसर बना दिया था। उन्होने लन्दन" class="mw-redirect">लन्दन में इण्डिया हाउस (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">इण्डिया हाउस की स्थापना की जो इंगलैण्ड (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">इंगलैण्ड जाकर पढ़ने वालों के परस्पर मिलन एवं विविध विचार-विमर्श का केन्द्र था।

जीवन वृत्त

श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म गुजरात">गुजरात के मांडवी गांव में हुआ था। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1888 में अजमेर" class="mw-redirect">अजमेर में वकालत के दौरान स्वराज">स्वराज के लिए काम करना शुरू कर दिया था। मध्यप्रदेश" class="mw-redirect">मध्यप्रदेश में रतलाम">रतलाम और गुजरात में जूनागढ़">जूनागढ़ में दीवान रहकर उन्होंने जनहित के काम किए। मात्र बीस वर्ष की आयु से ही वे क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे थे। वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और स्वामी दयानंद सरस्वती">स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रेरित थे। 1918 के बर्लिन">बर्लिन और इंग्लैंड में हुए विद्या सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था।

1897 में वे पुनः इंग्लैंड गए। 1905 में लॉर्ड कर्जन">लॉर्ड कर्जन की ज्यादतियों के विरुद्ध संघर्षरत रहे। इसी वर्ष इंग्लैंड से मासिक "द इंडियन सोशिओलॉजिस्ट" प्रकाशित किया, जिसका प्रकाशन बाद में जिनेवा (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">जिनेवा में भी किया गया। इंग्लैंड में रहकर उन्होंने इंडिया हाउस की स्थापना की। भारत लौटने के बाद 1905 में उन्होंने क्रांतिकारी छात्रों को लेकर इंडियन होम रूल सोसायटी (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">इंडियन होम रूल सोसायटी की स्थापना की।

उस वक्त यह संस्था क्रांतिकारी छात्रों के जमावड़े के लिए प्रेरणास्रोत सिद्ध हुई। क्रांतिकारी शहीद मदनलाल ढींगरा">मदनलाल ढींगरा उनके शिष्यों में से थे। उनकी शहादत पर उन्होंने छात्रवृत्ति भी शुरू की थी। विनायक दामोदर सावरकर">वीर सावरकर ने उनके मार्गदर्शन में लेखन कार्य किया था। 31 मार्च, 1933 को जेनेवा के अस्पताल में वे सदा के लिए चिरनिद्रा में सो गए।

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भारत के इतिहास हर दिन किसी न किसी महापुरुष के नाम रहा है! ऐसे ही कुछ महापुरुषों के बारे में कुछ जानकारी प्रस्तुत करने का प्रयास है ... हर दिन पावन
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